ध्यान क्या है

dhyan1-1

सच्चो सतराम !

ध्यान !!!

ध्यान के विष्य में हम जितना भी समझाएं या कुछ बताएं, वोह बताने से पहले, वोह हमें इतना ऊपर ले जाता है कि, हम संसार के सभी कार्य करते हुए, परमात्मा तक पहुँच जाते हैं l

इस लिए सब से पहले, हमें देखना है, कि, ध्यान है क्या ?

वास्तव में ध्यान, हमें स्वयं को देखने, स्वयं को जांचने और स्वयं को परखने की प्रक्रिया है, कियों कि, हम संसार में जितने भी मनुष्य हैं, सभी स्वयं को सही समझते हैं l

हम मानते हैं कि, मैं ही सही कर रहा हूँ, सामने वाला गलत कर रहा है, मैं अच्छी चलती हों परन्तु मुझे कोई सहन नहीं करता, मैं जितना अच्छा सोचती हों, परन्तु मेरे लिए कोई अच्छा नहीं सोचता, हर अच्छी वस्तु,हम अपनी ओर ले कर आते हैं, और, हर गलत चीज़ दूसरे पर थोपने की कोशिश करते हैं l

किन्तु, जब हम ध्यान में बैठते हैं, तो हमें पता चलता है कि, हम वास्तव में, हैं क्या ?

कियों कि, जैसे ही,हम ध्यान में बैठते हैं, हमें कितने ही ख्याल, कितने ही विचार, आना शुरू हो जाते हैं अच्छे,भले, बुरे, मंदे (ख़राब) कितने विचार आते हैं , और, कभी कभी तो, अधिकतर, ऐसे विचार आते हैं कि जिस से हमारा वास्ता ही नहीं होता, हमें तो यह, पता भी नहीं होता कि, यह कभी हुआ था कि, होगा ? और यह भी हम समझते हैं कि, होगा ही नहीं, फिर भी ऐसे विचार हमें सताते रहते हैं 1

या कभी, इतने ऊँचे विचार रखते हैं कि, हम सोचते हैं, कि, यह कभी, कैसे , कर पाएं गे, या नहीं, लेकिन वोह विचार आते रहते हैं l

तो वास्तव में, हम दूसरों को गलत मानते हैं और स्वयं को सही मानते हैं, लेकिन जब हम ध्यान में बैठें, तो हमें पता चलता है कि, हमारी अपनी सोच क्या है ? हमारे अपने विचार क्या हैं?

यदी हमारे ख्याल, हमारे विचार किसी के प्रति, किसी के लिए, अच्छे हैं, तो यह सकारात्मक है, अच्छा है, बेहतर है, l

यदी गलती से हम किसी के बारे में,गलत सोच रहे हैं, गलत विचार कर रहे हैं, तो हम गलती से भी, यह ना सोचें कि, हम अच्छे हैं, कियों कि , वास्तव में हम वैसे ही हैं, जैसे हमारे ख़यालात हैं , जैसे हमारे विचार हैंl कियों कि हम, करना वही चाहते हैं, जैसे हमारे विचार हैं1

किन्तु कभी किस के कारण? किसी भये के कारण, किसी संस्कृति के कारण,किसी डर के कारण,किसी सजा कि वजह से, या कभी समाज या समुदाय के कारण से वोह नहीं कर पा रहे हैं, वोह एक अलग बात है, लेकिन वास्तव में हम वैसे ही करना चाहते हैं जैसे हमारे विचार हैं l इसीलिए हमें, फल वैसा ही मिलता है,जैसे हमारे विचार होते हैं l

इस लिए सब से पहले, ध्यान, हमें खुद को दिखाना है कि, वास्तव में हम हैं क्या?

फिर जैसे ही हमें पता चला, कि मेरे अपने ख्याल ही अच्छे नहीं, तो फिर मैं किसी और के लिए क्या सोचों, तो जैसे हमें यह पता चले गा, कि वास्तव में, मैं ही …….मैं आप को एक उधारण देता हों l

“आप कभी किसी मंदिर में जाते हैं, मंदिर में जा कर, वहाँ पर, प्रार्थना, या अरदास करते हैं कि, मालिक मेरे दुश्मन को दफे करना, दफे करना यानि के उस को मार के ज़मीन में गाड़ देना , दफे तो उस को कहते हैं , यानि वोह बिलकुल ख़तम होजाये, तो, अभी सोचने वाली बात है कि, जिस ने हमारे साथ थोडा सा कोई अच्छा व्यहँवार नहीं किया, हमें थोड़ा सा कोई सताया, या, हम समझते हैं कि वोह हम से अच्छा नहीं चला, वोह चला न चला, इसका फ़ैसला हम नहीं कर सकते, यह तो, उस के ऊपर है, कि वोह क्या कर रहा है, यदी उसने थोड़ा गलत किया या थोड़ा भी हमें परेशान, किया, तो हम ने उसके लिए गलत सोचा, और हमने तो प्रार्थना की, कि उस को दफे कर देना, या गाड़ देना, या ख़तम कर देना, अभी यह सोचें,कि दुश्मन वोह ज़यादा है,या हम ज़यादा हैं ?

उस ने थोड़ा सा परेशान किया, और हम ने तो उसको, दफ़न ही कर दिया, ख़तम कर दिया, यह तो हम ज़यादा हुए, वोह तो नहीं हुआ l

इसलिए ध्यान में, हमें यह पता चलता है कि, हम हैं क्या ?

फिर जैसे हमें पता चलेग कि हम में कुछ कमी है, हम में कुछ गलती है, तो फिर धीरे धीरे खुद को सुधार में लाएं गे l

फिर वो ही होगा जो हमारे लिए अच्छा होगा , हमारे लिए बेहतर होगा l

फिर, जब हम, ध्यान के ऊपर जायेंगे, तो जो संत, जो महात्मा, जो दरवेश, जो फ़क़ीर, जो हमें सिखाते हैं, हम उसके ऊपर जायेंगे कि वोह हमें क्या सिखा रहे हैं, फिर हम जो ध्यान करें गे, हम उसकी अगली कड़ी में आगे जाएँ गे l

सच्चो सतराम l