ध्यान कहाँ करें
सच्चो सतराम !
ध्यान कहाँ करें वास्तव में ध्यान कहीं पर भी करें, परन्तु एक ही जगह पर करें l
ध्यान !!!
कोशिश करें कि जब हम घर में हों तो फिर एक जगह चुन लें, यदी घर में मंदिर है, तो वहाँ पर ध्यान करें, अगर नहीं है तो अपनी कोई जगह निर्धारित कर लें l
एक जगह पर ध्यान करने का अर्थ यह होता है, कि जैसे हर एक जीव, हर एक मनुष्य का अपना अपना भाग्य है, अपनी अपनी किस्मत होती है, वैसे ही हर एक जगह का भी, अपना अपना भाग्य होता है l
जैसे कभी कोई घर, कोई जायदाद, कोई दुकान हम लेते हैं, खरीदते हैं तो हमारी किस्मत खुलनी शुरू हो जाती है, हमारा भाग्य उदय होना शुरू हो जाता है, और सब कुछ इतना आता जाता है कि हमें पता ही नहीं चलता
और कभी कभी हम कोई घर, कोई जायदाद, कोई जगह लेते हैं, तो कभी कभी, पहले पड़े हुए पाऊँ ही, पीछे हो जाते हैं, वोह इस लिए कियों कि, जैसे हर एक इंसान, हर एक जीव की अपनी अपनी किस्मत, अपना अपना भाग्य होता है, और भाग्य, किस्मत कर्मों की वजह से होते हैं, यदी हमारे करम अच्छे होंगे तो उसके फल स्वरुप हमारा भाग्य उदय होगा, यदी करम गलत करेंगे, तो उसके फल स्वरुप दुःख मिले गा l
तो वैसे ही, हम जब किसी जगह पर, ज़यादा समय , ध्यान, सिमरन, सत्य करम करते हैं, उसी जगह का भाग्य उतना ही खुलता है, और जहाँ पर गलत कार्य होंगे, वह जगह वैसी बन जाये गी l
इसलिए जब अपने घर में एक ही जगह, पर बैठ कर ध्यान, सिमरन करें गे, एक ही जगह पर बैठ कर जाप करें गे, तो जैसे जैसे हमारा अंदर शुद्ध होगा, वैसे वैसे वोह जगह भी उतनी ही शुद्ध होगी, उतनी ही पवित्र होगी, और, जैसे जैसे हम वोह पवित्र स्वास लेंगे, पवित्र सांस लेंगे ,और उन साँसों को छोड़ें गे, वोह शुद्धि, वोह पवित्रताई, वोह शांती, हमारी साँसों में आ कर के, वहाँ के वातावरण, में घुल जाये गी, वहाँ की आबोहवा में घुल जाये गी,
और वहाँ का वातावरण वहाँ का माहोल भी पूरी तरह से शांत, शुद्ध और पुरसुकून हो जाये गा l
जब अपने घर में हम एक ही जगह पर बैठ कर ध्यान करें गे, तो फिर जहाँ पर बैठें गे वोह जगह भी भाग्य से उदय होगी, भाग्यशाली हो जाये गी, और, वहाँ पर बैठ कर जब स्वास लेंगे, वहाँ पर सकून, और शांती फैले गी, तो हमारा घर सकून और शांती का, सुख और समृदी का एक केंद्र बन जायेगा, इसीलिए हर दिन हम एक ही जगह पर बैठें गे, तो उस केंद्र से उत्पन हुए प्रभामंडल का दायरा बढ़ता जायेगा बढ़ता जायेगा और हमारा पूरा घर जो है, वोह सुख समृदी, प्यार और मुहोब्बत, का केंद्र बन जाये गा l
यह न हो कि कभी यहाँ पर कभी वहाँ पर कभी कहाँ पर बैठें…… नहीं ……
जब घर में हों, तो एक जगह पर बैठें, कहीं और जगह हों, तो कहीं पर भी ध्यान में बैठ सकते हैं, और, यदी कभी अवसर मिले, और हम सभी जो घर के हैं, जो परिवार के सदस्य हैं, तो वोह सभी हर दिन मिल कर के, कोशिश कर के साथ में बैठें तो, हम सभी शुद्ध और पवित्र हो जाएँ गे, और अपने घर को भाग्य से भरें लें गे l
और जब हो सके, तो कभी मंदिर में, धाम पर बैठ कर,पूरी मंडली के साथ हम ध्यान करें, जब सभी के साथ बैठें गे, तो सभी की सोच, सभी के शुद्ध विचार, हम सभी को पूरा शुद्ध कर दें गे , और, वहाँ मंदिर का जो भाग्य है रहमतें हैं, उनकी शुद्धि वोह हमारे जीवन में आयेगी, और वोह ले कर के हम अपने घर आयें गे, और अपने घर को भी शुद्ध करें गे पवित्र करें गे
इसीलिए जब हम घर में हों, शहर में हों तो हम अच्छे तरीके से बैठ के ध्यान करें गे, लेकिन कभी कभी काफी ऐसे कारण होते हैं, जैसे कि कभी हम सफ़र में होते हैं, कभी हमारी तबियत सही नहीं होती कभी ऐसा माहोल नहीं मिलता, ऐसे माहोल में होते हैं कि वहाँ पर हम ध्यान कर नहीं पाते हैं, ऐसी स्थिति में हमारी आँखें खुकली हों या बंद हों, हम बैठें हों या सोये हों, हम कुर्सी पर बैठें हों या सोफे पर बैठे हों जैसे हों, उस समय यदी हम किसी मित्र को, किसी साथी, किसी रिश्तेदार को, याद करें तो उसका चेहरा हमारे सामने होता है, ऐसे ही खुली आँखों से हम उसी सच्चे साई को याद करें, अपने सतगुरु को याद करें, और अंदर, जैसे ही हम सांस ले रहे हैं, उसपे नाम का ध्यान और सिमरन करें, हम उभरते रहें गे और बढ़ते रहें गे l
कभी हम सफ़र में हों हम आँखे बंद नहीं कर सकते कयों कि सामन है, किछ और चीज़ें हैं, हमें सभी का ध्यान करना है तो कोई बात नहीं, हम जैसा भी माहोल हो जैसा भी कुछ हो हम वैसा करें लेकिन जब घर में हों तो एक ही जगह पर ध्यान करें l
जब अवसर मिले, तो सब मिलकर, करें , हम मंदिर में, ध्यान करें और, उनकी भी रहमतें ले केर आयें, लेकिन, यदी बाहर हैं,तो आँखें खोल कर, बैठ कर, सो कर के,कैसे भी ध्यान करें ,कोई फर्क नहीं पड़ता, लेकिन हम ध्यान करें ज़रूर, कयों कि यह एक ऐसी चीज़ है, एक ऐसा माहोल है, जो हमें संसार के तो सभी सुख दे, लेकिन आगे साहिब तक भी,मिला दे, लोक और परलोक दोनों संवार दे l
इस लिए, ध्यान को, छोड़ना नहीं है, उस को हर दिन करना अनिवार्य है, और हम करते रहें, और हम प्रभु से प्रार्थना करते रहें गे, वोह रेहमत करे गा,कृपा करे गा, और उनकी आशीष ऐसे ही पाते रहें गे l
और, उसके फल स्वरूप, जो आशीर्वाद मिलेगा, वोह हमें, यहाँ और वहाँ, दोनों जगह, सुख देगा l