ध्यान कैसे करें
सच्चो सतराम !
तो अभी प्रशन आये गा कि ध्यान कैसे करें ?
ध्यान !!!
तो ध्यान कैसे करने से पहले, हमें यह विचारना होगा, कि हम ध्यान कियों कर रहे हैं?
कियों का अर्थ है, कि किस उद्देश्य के लिए कर रहे हैं ?
कियों कि, जब हम ध्यान में आते हैं, तो फिर उस के लिए हमें, कितनी ही सोच और विचार आते हैं l
कभी हम ध्यान अपने विचार बेहतर करने के लिए करते हैं , कभी हम ईश्वर प्रप्ति के लिए करते हैं, कभी खुद को सँवारने के लिए करते हैं, और कभी अपनी सेहत , हेल्थ के लिए करते हैं l
तो हम कैसे करें ?
तो पहले हम ध्यान में बैठने के, जो भी आसान हैं , कुछ भी हैं, वोह, हम किसी भी प्रकार से बैठ सकते हैं,
हम कुछ कारण से, कभी किसी आसन में बैठें गे, कभी किसी मुद्रा में बैठें गे, जिस की हमें ज़रुरत होगी, हम वैसे करें गे ,
परन्तु,जब हम ध्यान में आ रहे हैं, तो फिर, उसी प्रभु , उसी परमात्मा की तरफ आ रहे हैं, तो, उसके लिए, हम, साधारण तरीके से आरामदेह हो कर, बैठें गे, हलके से कपडे पहन कर, दोनों हाथ ऐसे बंद कर के, दोनों टाँगें मिला कर, ऐसे ध्यान में बैठें ,(आँखें बंद कर के )
और जब हम ध्यान में बैठें गे तो, फिर हमारा जो भी तसवुर (कल्पना) जो भी ध्यान होगा, जैसे दोनों आँखें बंद करें गे, अपने आप से, दोनों भौहों के बीच में आज्ञा चक्र पर आ जाये गा (between the eyebrows) अपने आप आ जाये गा, हमें कुछ करने कि ज़रुरत नहीं है, , आज्ञा चक्र पर इसलिए, कियों कि, यह हमारी सोच, विचार और ख्यालों की जगह है, अक़ल बुधी, और समझ की जगह है विचार शक्ति का केन्द्र है l
हम देखते हैं कि जब हम कोई काम करते हैं, हम कुछ लिख रहे हों, लिखते लिखते कोई वाक्य, कोई आँकड़ा, कोई नाम, कोई चीज़ हम भूल जाएँ, जैसे ही हम भूल जाते हैं, हमारी कलम रुक जाती है , और हम दिमाग पर ज़ोर देना शुरू कर देते हैं, जैसे ही दिमाग पर ज़ूर दिया, हमारी कलम का उल्टा तरफ माथे पर खटकना शुरू हो जाता है l
वोह कभी गाल पर नहीं आता, कभी कंधे पर नहीं आता, किसी और जगह पर नहीं आता, बस दोनों भौहों के बीच में आज्ञा चक्र पर खटकना शुरू हो जाता है जो हमारी विचार शक्ति का केंद्र है l
इस का अर्थ है कि, हम इसी जगह को यानि कि आज्ञा चक्र को जगाते हैं, इसी जगह को होशियार करते हैं, और फिर जैसे इस जगह को जगाया, होशियार किया, हमारी यादाईशत वापिस आ जाती है, और हम लिख कर के आगे बड़ जाते हैं,
या, कभी हम कोई बेहतर काम करते हैं, कोई अच्छा काम करते हैं, या किसी को दुखाने वाला काम करते हैं तो जैसे ही कर के दिखाते हैं तो तुरंत ही हाथ सिर पर आ जाता है जैसे कि, हमने कुछ बड़ा कर कर के दिखाया, और सोचते हैं कि हम कुछ भी कर सकते हैं l
और, कभी जब हमें कोई थोडा सा भी काम होता है, पर हम कर नहीं पाते, हम से होता ही नहीं, हम बहुत प्रयास करते हैं, लेकिन, जब किसी दुसरे ने थोडा सा बताया, थोडा संकेत दिया , तो माथे को धक्के मारते हैं , इसे पीटते हैं कि, अरे, मुझे इतनी समझ नहीं है , मेरे दिमाग ने पहले काम कियूं नहीं किया l
वास्तव में आज्ञा चक्र की जगह हमारी सोच, समझ, अकल और बुद्धि की जगह है, इसी लिए ध्यान यहाँ पर लगाया जाता है, कि, मेरे मालिक की रेहमत, कृपा यहाँ पर मिले , मेरी सोच समझ अकल और बुद्धि सही हो,
यदी सोच और समझ सही हुई, तो हम कहाँ पर भी हों, किसी भी वक़्त, किसी भी जगह, पर, हमें, कोई गलत विचार आये गा ही नहीं, तो हम से,कोई गलत करम होंगे ही नहीं, हम सदा सत्य करम करते आगे बढ़ें गे, और यदी यह जगह सही न होगी, सोच और समझ सही नहीं होगी, तो फिर हम कहाँ पर भी हों, किसी भी जगह पर हों, किसी भी माहोल मैं हों, फिर भी हमारे पाओं गलत तरफ चले जाएँ गे l
इसीलिए ध्यान आज्ञा चक्र पर लगाया जाता है, कि हमारी, सोच और समझ अकल और बुधि बेहतर हो,
इसीलिए इसी जगह को शिव नेत्र कहा जाता है,
शिव नेत्र
शिव का अर्थ हैं कल्याण, शिव का अर्थ है सुख, शिव का अर्थ है, आनंद,
यानि यदी , यह आज्ञा चक्र की जगह बेहतर हुई, हमारी, सोच और समझ, बेहतर हुई, तो पूरा जीवन कल्याणकारी हो जाये गा , हमारे ख्याल और विचार अच्छे हुए, सही हुए, तो फिर पूरी ज़िन्दगी सुखदायक बन जाये गी,
हमारी अकल और बुद्धि, ने सही काम किया, तो हमारा हर अमल आनंदमय बन जाये गा l
तो हमारा पूरा जीवन शुद्ध बन जाये गा l
इसीलिए ध्यान माथे पर, दोनों भौहें के बीच लगाया जाता है कि ‘मुझे मालिक की रेहमत मिले , मेरी सोच और समझ सही हों ‘
सोच और समझ सही हों तो, सब कुछ सही हो जाता है , इसीलिए उस मालिक का ध्यान दोनों भौहें के बीच की जगह पर जो विचारशक्ति का केन्द्र है वहाँ लगाया जाता है l और जब हम ध्यान करते हैं, तो ध्यान के बाद आता है हमारा सिमरन, हमारा नाम मंत्र और हमारा जाप l
नाम मंत्र मैं, अथाह शक्ति होती है, एक अक्षर मैं इतनी रहमतें, आशीषें भरी होती हैं कि, हमारे पूरे अंदर को इतना उज्वल, इतना शक्तिशाली, इतना शुद्ध कर दें, कि हम संसार मैं तो शुद्ध हों, और आगे साहिब तक भी जाएँ l
और उसी नाम को हम सांस सांस मैं लेते हैं, स्वास स्वास मैं लेते हैं, कि, जब हम ध्यान करें, और ध्यान के बाद नाम का सिमरन करें, तो सांस सांस को, जैसे वोह सतगुरु, वोह मालिक सिखाये, जैसे वोह हमें बक्शे , हम उसका सिमरन करें, फिर जैसे ही उसको हम स्वास स्वास मैं लेंगे l
तो फिर हमें यह याद रखना चाहिए कि जैसे कि सांस हमें जीवन देती है हम सांसों पर ध्यान लगाएं और उन पर नज़र रखें l ध्यान लगा कर ध्यान लगाया और सांस पर नाम का सिमरन किया
और जैसे हम साँसों पर नज़र रखें गे, हमारी साँसों की गति या रफ़्तार अपने आप सही होना शुरू हो जाती है l
हम देखते हैं कि हमारी साँस ऐसी होती है, जैसे हम खुद l
जैसे हम स्वयं , घर में हों, परिवार में हों, रिश्तेदारों में हों, दुकान पर हों, ऑफिस में हों, कहीं पर भी हों, हम अच्छे तरीके से शालीनता से अच्छे कपडे पहन कर अच्छे तरीके से बैठे होंगे, बात कर रहे होंगे, वहाँ से उठ कर के, यदी हम अपने कमरे में आयें, कभी तकिया लिया न लिया,कभी जूते उतारे न उतारे ऐसे ही बैठ गए, ऐसे ही, किसी भी अंदाज़ मैं लेट गए, लेकिन फिर अचानक कोई आया उस ने दरवाज़ा खोला तो हम फिर चौंक जाते हैं, और खुद को संभाल के बैठ जाते हैं l
इसीलिए हमारी साँस भी वैसी है , हमारी सांसों पर भी नज़र रखनी चाहिए, तो फिर हम चाहे योग में हों, प्राणायाम में हों , नाम में हों ,ध्यान में हों,
वोह इसीलिए कि , जब हम ध्यान मैं बैठे हों हम सही तरीके से, सही ढंग से, सांस लेते रहें,
कियों कि ऐसा करने से, पहले हमारे दिमाग को आक्सीजन मिलती, है, हमारा दिमाग बिलकुल सही काम करता है और फिर जैसे ही हम सही तरीके से सांस लेते हैं, तो हमारी जो भी नसें हैं, उन पर दबाव पड़ता है, और जो भी खून के थक्के (clots) हैं वोह सभी ख़तम हो जाते हैं, और हमारे खून का दौरा खून का भहाव ठीक हो जाता है l
जब हमारे खून का भहाव पूरी तरह से सही हो गया तो हमारे दिल को सही तरीके से लगातार खून का बहाव मिलता रहता है, हमारा दिल बिलकुल सही काम करता है, और दिल की कभी बीमारी नहीं होती, जब हमारे दिल की कोई बीमारी नहीं होती, तो हमारे गुर्दों (kidneys) पर किसी प्रकार का कोई दबाव नहीं आता ,इसीलिए वोह सही तरीके से खून साफ़ करते रहते हैं ,जब हमारी किडनी सही काम करती रहती है तो उस का असर हमारे लिवर पे आता है और उस पर कोई प्रकार का कोई दबाव नहीं आता तो इसीलिए सही तरीके से सांस लेने से हमारे दिल, दिमाग, गुर्दे, लिवर, जिगर की नस नस पूरी तरह से सही हो जाती है l
और हम लगभग ७० प्रतिशत (7०% ) बीमारियों से दूर हो जाते हैं l
इसीलिए सांस हमें सेहत हेल्थ और जीवन देती है फिर उस में इतनी शक्ति है कि जब उस में नाम को ढाल दिया, उसको नाम में सिमरन किया, जाप किया, तो इतनी शक्तिशाली हो जाती है कि हमारी कुंदालिनी सब शक्तियां खुलती जाएँ गी और हम इतने शक्तिशाली और हमारा अंदर इतना शुद्ध और पवित्र हो जाये गा और संसार में तो शुद्ध होंगे और आगे परमात्मा तक पहुँच जायेंगे l
इसलिए हमें अपने जीवन में,ड्रिडविश्वास से,अपने लक्ष को पाना है l
ध्यान हमारा लक्ष्य है, और सिमरन हमारा ड्रिडविश्वास l
जब तक उस लक्ष्य उस प्रभु,उस परमात्मा, उस मालिक, को न पाएं गे हमें,कोई मिटा न सकेगा, और हम आगे बढ़ते जायेंगे l
और जब हम बैठने की बात करते हैं कि, हम कहाँ पर बैठें ? कैसे बैठें?
हम कहीं पर भी बैठें, कैसे भी बैठें, लेकिन हम बैठें ज़रूर
अगर हम पूरब की और मुंह कर के बैठें गे, तो हमें जो किरणे मिलें गी, अच्छाई मिले गी वोह इतनी ज़यादा शांती दे गी, बेहतरी दे गी ,और हम अच्छे तरीके से बड़ पाएंगे,
अगर हम पूरब की और मुंह कर के बैठें गे, तो हमें जो किरणे मिलें गी, अच्छाई मिले गी वोह इतनी ज़यादा शांती दे गी, बेहतरी दे गी ,और हम अच्छे तरीके से बड़ पाएंगे,
लेकिन हम बैठें ज़रूर, अच्छे तरीके से बैठें, और जब बैठें तो सब से पहले कोशिश करें कि, हम शांत मन से बैठें ,
जब हम शुरू करने बैठे तो सिर्फ दोनों हाथ बंद कर के आपस में दोनों हाथों को मिला कर दोनों हाथों की उँगलियों को आपस में जोड़ लें
दोनों हाथ बंद करने का अर्थ है, हमारे चित को एकाग्र करना, दिमाग को शांत करना, ऐसे आँखें बंद कर के ऐसे ही बैठें सिर्फ कुछ मिनटों के लिए, थोड़े समय के लिए, हम कुछ न सोचें, कुछ न बोलें , सिर्फ शान्ति से बैठें …….
और फिर जैसे बैठें गे, तो फिर धीरे धीरे जैसे हमारा चित शांत होगा, फिर धीरे धीरे सांस लें और फिर साँसों में नाम का सिमरन करें, और हम आगे बढ़ते जाएँ
और कभी कुछ सताना शुरू कर दे तो, बेशक कोई हल्की सी आवाज़ में कोई भजन, कोई धुनि साहिब, धीरे से बजा लें, यदी बजाएं तो ठीक है न बजाएं तो ज़यादा अच्छा है,
हम जितना शांति से बैठें गे उतने अच्छे तरीके से याद करें गे, और उसी समय हम पूरी तरह से खुद को शांत करें, खुद को खामोश करें l
बैठने से यदी हमें तकलीफ हो रही है, हम महसूस कर रहें हैं कि हमारा ध्यान नहीं लग रहा है, तो हम सतगुरु से, ईश्वर से प्रार्थना करें कि,
‘हे मालिक मुझे इतनी रेहमत, इतनी शक्ती इतनी सुमत दें, कि मैं तुम्हारे चरणों में बैठों, और जब बैठों तो, सिर्फ तुम ही तुम हो, मेरे सारे और विचार ख़तम हो जाएँ ‘
बैठने के बाद यदी हमें ख्याल सताने शुरू करें, तो फिर ख्यालों से विचारों से लड़ो नहीं, उनसे झगड़ो नहीं, उनको दूर करने की कोशिश न करो, कियों कि वोह तो हमारे साथ सदा रहते हैं, इसीलिए उनसे सिर्फ थोड़ी सी प्रार्थना करें, कि
‘मैं तो हमेशा तुम्हारे साथ हूँ, तेरे साथ ही रहता हूँ ,दिन में 23 घंटे तो तेरे साथ हों बाकी आधा घंटा मैं सुबह को, शाम को ध्यान करता हूँ , यह आधा घंटा सिर्फ दे दो, मैं अपने प्रभु को अपने सतगुरु को अपने ईश्वर को दे दूं फिर मैं तुम्हारे साथ आ रहा हों फिर कोई बात नहीं, मैं ही तेरे साथ हों तेरे ही साथ हूँ , और यदी हो सके तो तुम भी मेरे साथ आ जाओ यदी न हो सके तो सिर्फ आधे घंटे के लिए मुझे छोड़ दो , मैं फिर आप के पास पास आ रहा हूँ ‘
और प्यार से,एक बार, दो बार, तीन बार कहो गे, तो वोह शांती से बात ख़तम हो जाये गी, वोह प्यार से ही हमें,ख़तम करनी है, वोह झगडे से ख़तम नहीं करनी, उनको भगाना नहीं है, उनको प्यार से सिर्फ कहना है, कि,तुम सिर्फ, थोड़े समय के लिए, दूर हो जाओ l
और फिर, वोह दूर तो होंगे, या नहीं होंगे, लेकिन वोह इतने अच्छे हो जाएँ गे, कि आप बैठो गे, वोह भी शान्ति से बैठ जायेंगे,और अंदर के सभी सताने वाले विचार, शांत हो जाएँ गे l
और ऐसे हम अपने जीवन को आगे बढ़ा पाएंगे l
और जब हम ध्यान करें हमारे विचारों में उसी समय, उसी ईश्वर का, प्रभु का, सतगुरु का धन्यवाद् करें, कि मालिक तेरी रेहमत, कि तुमने मुझे ध्यान में बैठाया यानि मुझे संभाला, मुझे संभलने का मौका दिया अभी यह आर्शीवाद दे कि मैं खुद को संभाल के ऐसा बनों कि तेरी रेहमत का पात्र बन सकूं l